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Assam में अवैध घुसपैठियों पर होगी कड़ी कार्रवाई, सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में नागरिकता अधिनियम की धारा 6-ए की संवैधानिक वैधता को बनाए रखने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस फैसले के बाद Assam में बड़े पैमाने पर अवैध घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई तेज होने की संभावना है। BJP ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि इससे असम में अवैध घुसपैठ पर प्रभावी कार्रवाई की जाएगी।

धारा 6-ए क्या है?

धारा 6-ए नागरिकता अधिनियम का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जिसे 1985 में असम समझौते के तहत लागू किया गया था। यह प्रावधान असम में 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक प्रवेश करने वाले प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने की व्यवस्था करता है। इस धारा के अनुसार, जो लोग 1966 से पहले असम में प्रवेश कर चुके हैं, उन्हें असम का नागरिक माना जाएगा। वहीं, 1966 से 1971 के बीच आए लोगों को नागरिकता के लिए आवश्यक नियमों का पालन करना होगा। इसके बाद जो लोग असम में अवैध रूप से घुसपैठ कर चुके हैं, उन्हें गैरकानूनी घुसपैठिया माना जाएगा और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6-ए को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया है। इस फैसले को चार जजों ने बहुमत से समर्थन दिया, जबकि एक जज ने असहमति जताई। फैसले के अनुसार, असम में 1 जनवरी 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच आए प्रवासियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी, लेकिन जो लोग इसके बाद आए हैं, उन्हें अवैध घुसपैठिया माना जाएगा।

BJP की प्रतिक्रिया

BJP ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला असम के लोगों की लंबी खड़ी समस्याओं का समाधान करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। उन्होंने कहा, “हम इस फैसले का स्वागत करते हैं। असम में 1966 तक जो लोग आए थे, उन्हें नागरिक माना जाएगा और 1966 से 1971 के बीच आए लोगों को आवश्यक नियमों का पालन करना होगा। जो लोग इसके बाद आए हैं, वे अवैध घुसपैठिए माने जाएंगे।”

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BJP ने इस फैसले को असम के लोगों की लंबे समय से चली आ रही शिकायतों का समाधान बताया है। पार्टी का मानना है कि इस फैसले से असम में अवैध घुसपैठ पर कड़ी कार्रवाई होगी और राज्य में कानून व्यवस्था बहाल होगी।

असम में अवैध घुसपैठ का मुद्दा

असम लंबे समय से अवैध घुसपैठ की समस्या से जूझ रहा है। खासकर बांग्लादेश से बड़ी संख्या में प्रवासियों के आने के कारण राज्य की जनसांख्यिकी और सामाजिक संरचना पर गहरा प्रभाव पड़ा है। असम में अवैध प्रवासियों का मुद्दा न केवल सामाजिक और आर्थिक समस्याएं खड़ी करता है, बल्कि राजनीतिक विवादों का भी एक प्रमुख कारण है। असम के लोग लंबे समय से अवैध घुसपैठ के खिलाफ आवाज उठाते आए हैं और इस मुद्दे को लेकर कई बार हिंसक आंदोलन भी हुए हैं।

कांग्रेस की प्रतिक्रिया

कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए कहा कि वे इस फैसले का समर्थन करते हैं, क्योंकि यह 1985 में राजीव गांधी सरकार के दौरान हस्ताक्षरित असम समझौते की पुष्टि करता है। गोगोई ने इस फैसले की प्रशंसा करते हुए कहा कि असम समझौता एक ऐतिहासिक दस्तावेज है जिसने राजनीतिक उथल-पुथल के बाद राज्य में शांति स्थापित की। उन्होंने कहा कि असम समझौते के समय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने छात्र नेताओं के साथ संवाद कायम रखा, भले ही राजनीतिक मतभेद थे।

हालांकि, उन्होंने वर्तमान सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अब के दौर में BJP विरोध प्रदर्शनों को देशद्रोही और खालिस्तानी करार देती है, जबकि मणिपुर जैसे मुद्दों पर प्रधानमंत्री मोदी ऐसा बर्ताव करते हैं मानो वह राज्य मौजूद ही नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और इसके प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला असम में अवैध घुसपैठ के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इस फैसले के बाद अब असम सरकार को अवैध प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई करने में कानूनी समर्थन मिलेगा। इससे न केवल राज्य में अवैध प्रवासियों की पहचान और उनके खिलाफ कार्रवाई आसान होगी, बल्कि राज्य की जनसंख्या संतुलन को भी सुधारने में मदद मिलेगी।

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यह फैसला असम में रह रहे उन लोगों के लिए भी राहत की बात है जो 1966 से 1971 के बीच राज्य में आए थे और अब वे नागरिकता के नियमों का पालन कर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन जो लोग 1971 के बाद असम में अवैध रूप से घुसे हैं, उन्हें राज्य छोड़ना होगा या कानूनी कार्रवाई का सामना करना होगा।

वोट बैंक की राजनीति पर सवाल

रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जो लोग वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं, उन्हें अब इस फैसले का पालन करना होगा। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस जैसी पार्टियों ने हमेशा से अवैध घुसपैठियों का समर्थन किया है ताकि उनका वोट बैंक बना रहे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब वोट बैंक की राजनीति करने वालों को भी इस मुद्दे पर विचार करना होगा।

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